अरशद मदनी ने कहा- हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक ही हैं, RSS प्रमुख ने कुछ भी गलत नहीं कहा, मैं तो मानता हूं संघ अब सही रास्ते पर है

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद दारुल उलूम भी चर्चा में है। उसे तालिबान की विचारधारा से जोड़कर देखा जा रहा है। इसी बीच हाल ही में मुसलमानों को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के बयान ने भी सुर्खियां बटोरी हैं।

मदनी से तालिबान और दारुल उलूम के रिश्ते को लेकर खुलकर बात की थी। आज दूसरी सीरीज में हमने मदनी से पूछा कि वे संघ प्रमुख के बयान को लेकर क्या राय रखते हैं? दारुल उलूम में महिलाओं को मजहबी शिक्षा क्यों नहीं दी जाती है? इसी तरह और भी कई सवाल हैं,

उन्होंने गलत क्या कहा? हिंदुस्तान में रहने वाले गुर्जर, जाट, राजपूत हिंदू भी हैं और मुसलमान भी हैं। यह तो बहुत अच्छी बात है। मैं तो उनकी इस बात की बहुत तारीफ करता हूं। मैं तो समझता हूं कि RSS का जो पुराना रवैया था, वह बदल रहा है और वे सही रास्ते पर हैं।

मुसलमान को अपने मुल्क से प्रेम है। ये जो केस पकड़े जाते हैं दहशतगर्दी के, वे ज्यादातर झूठे होते हैं। क्योंकि अगर यह सब सच्चे हैं तो फिर निचली अदालत से सजा मिलने के बाद हाईकोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट से लोग कैसे बरी हो जाते हैं? मेरे सामने कई ऐसे केस आए हैं, जहां लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट ने फांसी की सजा दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस शख्स को बाइज्जत बरी कर दिया।

मुल्क में एक लाख से ज्यादा मस्जिदें हैं, जहां 5 वक्त की अजान दी जाती है और 5 वक्त की नमाज भी पढ़ी जाती है। हमें हर मस्जिद के लिए इमाम चाहिए। इन मस्जिदों में जो बच्चे आते हैं, उनको तालीम देने के लिए मौलवी चाहिए। नहीं तो हमारी मस्जिदें वीरान हो जाएंगी। यह हमारा निसाब-ए-तालीम है जो खालिस मजहबी है। हम स्टूडेंट्स को प्रोफेसर, एडवोकेट और डॉक्टर नहीं बनाते। हम उनको खालिस मजहबी इंसान बनाते हैं, जो नमाज पढ़ाए, मजहबी तालीम दे।

इसके अलावा इस्लाम का तसव्वुर कि दुनिया के अंदर मजहब से ऊपर रहकर प्यार मोहब्बत से रहना, वह सिखाते हैं। हम उन्हें यह बताते हैं कि अपने धर्म की खिदमत करनी चाहिए, लेकिन किसी को पाबंद नहीं बनाते। स्टूडेंट किसी और यूनिवर्सिटी में जाकर तालीम हासिल करना चाहता है तो हमें कोई दिक्कत नहीं।