
हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी छत्तीसगढ़ में दुष्कर्म के दोषी को 7 साल की जगह 10 साल से अधिक समय जेल में काटना पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन माना है और उसे साढ़े सात लाख रुपए मुआवजा राशि देने का आदेश राज्य शासन को दिया है। इसके साथ ही इस लापरवाही के लिए दोषी अधिकारी पर कार्रवाई करने का भी आदेश दिया है। कैदी ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था। मामला जशपुर जिले का है।
जशपुर जिले के फरसाबहार थाना क्षेत्र के ग्राम तमामुंडा निवासी भोला कुमार दुष्कर्म के मामले में जेल में बंद था। निचली अदालत ने उसे साल 2014 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने 19 जुलाई 2018 को उसकी सजा सात साल कर दी थी। इसके बाद भी उसे 10 साल से अधिक समय जेल में बिताना पड़ा। इसके खिलाफ भोला कुमार ने अंबिकापुर जेल में रहते हुए सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था।
सुप्रीम कोर्ट ने पत्र को माना स्पेशल लिव पीटिशन
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रवि कुमार की बेंच ने उसके पत्र को स्पेशल लिव पीटिशन (SLP) के रूप में स्वीकार किया। साथ ही केस में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को अभियुक्त के संबंध में दस्तावेज तैयार करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट में पेश दस्तावेज के आधार पर सुनवाई हुई। अंबिकापुर जेल अधीक्षक के दस्तावेजों का परीक्षण किया गया। उसमें पुष्टि हुई कि हाईकोर्ट ने सजा की अवधि में संशोधन किया था। फिर भी रिहाई नहीं दी गई।
सुप्रीम कोर्ट के नोटिस से पहले काट चुका था 10 साल कैद
सुप्रीम कोर्ट ने जब राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से दस्तावेजों की जानकारी जुटाई, तब जेल प्रशासन हरकत में आया। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश की जानकारी जुटाई। 9 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट में सभी पक्षों की सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने उसे रिहा करने का आदेश दिया, लेकिन रिहाई की कार्रवाई से पहले ही वह जेल में 10 साल से अधिक सजा भुगत चुका था। इस दौरान बताया गया कि हाईकोर्ट के फैसले की सूचना जेल प्रशासन को नहीं दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मौलिक अधिकारों का हुआ है हनन
सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई 2018 को जारी हाईकोर्ट के आदेश पर अमल नहीं होने को गंभीर माना है। इसे संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन बताया है। लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य शासन को आदेश दिया है कि दुष्कर्म के दोषी को तय समय से अधिक सजा भुगतने के लिए सात लाख 50 हजार रुपए मुआवजा दिया जाए।
चूक करने वाले अधिकारियों पर की जाए कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट में जेल अधीक्षक ने शपथपत्र दिया है। इसमें बताया कि कुल सजा ( छूट की अवधि को छोड़कर ) 8 वर्ष एक माह और 29 दिन की थी। चूंकि अभियुक्त 15 हजार रुपए जुर्माना नहीं दे सका। इस आधार पर फैसले के अनुसार उसे 7 वर्ष की अवधि के अलावा एक वर्ष के अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी। यह भी कहा गया कि हाईकोर्ट के निर्णय की सूचना जेल अधिकारियों को नहीं दी गई। सुप्रीम कोर्ट की ओर से 4 मार्च को जारी आदेश की सूचना 10 मार्च 2022 को मिली और तत्काल कार्रवाई की गई।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के 19 जुलाई 2018 के फैसले के बारे में अनभिज्ञता का नाटक कैसे कर सकता है। हम इस तथ्य से बेखबर नहीं हैं कि यहां अपीलकर्ता को एक गंभीर अपराध में दोषी ठहराया गया था। फिर भी जब एक सक्षम अदालत ने दोषी होने पर सजा सुनाई और अपील में सजा कम करने की पुष्टि की गई। इसके बाद भी उसे हिरासत में कैसे रखा जा सकता है। कोर्ट ने कहा है कि हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि गलती करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।












