994-95 में साउथ कोरिया की कंपनी देवू ने एक हजार मेगावाट का पावर प्लांट लगाने का करार तत्कालीन मध्यप्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार से किया था। देवू कारपोरेशन बाद में दिवालिया हो गया। पावर प्लांट लगा नहीं। इधर मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ बन गया। इन 27 सालों से प्लांट के लिए अधिग्रहित की गई जमीन यूं ही पड़ी हुई है।
कुछ हिस्सों पर जरूर मूल भूमिस्वामी अब भी खेती किसानी करते हैं वहीं कहीं-कहीं ईंट भी बनाई जाती है। अब जबकि कोरोना महामारी के दौरान जिले में विगत 12 अप्रैल से लॉकडाउन लगा हुआ है। जो 31 मई तक जारी रहेगा।
इसी बीच शनिवार को दल बल के साथ वहां प्रशासनिक अमला पहुंचा और उसने जमीन का सीमांकन की शुरुआत कर दी। यही नहीं 4 एक्सीवेटर आकर खुदाई करने लगे। ग्रामीणों ने इसका विरोध किया। ग्रामीणों की बढ़ती संख्या को देखते हुए वहां बालको, सिटी कोतवाली, रामपुर चौकी व पुलिस लाइन से अतिरिक्त बल पहुंचा। इस बीच ग्रामीणों से बात करते हुए अचानक तहसीलदार सुरेश साहू नाराज भी हो गए। बाद में उन्होंने शांति के साथ ग्रामीणों को किसी तरह समझाइश दी। हाईकोर्ट में जमीन की स्टेटस रिपोर्ट देनी है।
हम किसी को बेदखल या कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। वैसे भी जमीन देवू कारपोरेशन की है, जिसने मुआवजा भी आप लोगों को दे दिया है। बड़ी संख्या में पुलिस को देखते हुए ग्रामीण भी चुपचाप एक तरफ हो गए। शाम तक सीमांकन का काम जारी था। रिस्दी में कुछ देर के लिए गांव की महिलाएं व पुलिस प्रशासनिक अमला आमने सामने हो गया था। गांव के ही कुछ बुजुर्ग व अधिकारियों की समझाईश पर स्थिति शांत हुई। इस बीच वहां भाजपा नेता अजय विश्वकर्मा, मंजू सिंह, सुमन सोनी आदि भी पहुंच गए थे। इन्होंने कहा कि सरकार को बस्तर व कोरबा के लिए अलग अलग पैमाना नहीं अपनाना चाहिए। जमीन जब किसानों के कब्जे में है फिर उन्हें ही मिलनी चाहिए।

