
वन विभाग ने सरगुजा और सूरजपुर जिलों में पड़ने वाले परसा ओपन कास्ट कोयला खदान के लिए वन भूमि के उपयोग की मंजूरी दे दी है। यह परियोजना 841.538 हेक्टेयर वन भूमि पर शुरू होगी। इसकी वजह से इस पूरे क्षेत्र में पेड़ों की कटाई होगी। वहीं सैकड़ों ग्रामीणों को अपना गांव-घर छोड़कर जाना पड़ेगा। स्थानीय ग्रामीण इस परियोजना का लंबे समय से विरोध कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अवर सचिव केपी राजपूत ने पिछले सप्ताह प्रधान मुख्य वन संरक्षक को मंजूरी का विवरण भेजा। इसके मुताबिक सरगुजा एवं सूरजपुर वन मंडल की 841.538 हेक्टेयर वन भूमि को पांच लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष की क्षमता वाली परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को देने को मंजूरी दे दी गई है। हालांकि वन विभाग ने इस मंजूरी के साथ 15 शर्तें भी जोड़ी हैं।
इसके मुताबिक डायवर्ट किए गए क्षेत्र, प्रतिपूरक वनीकरण के तहत क्षेत्र, मिट्टी और नमी संरक्षण कार्यों, वन्यजीवों के संबंध में ई-ग्रीन वॉच पोर्टल पर डिजिटल मैप फाइल अपलोड करनी होगी। वन भूमि की कानूनी स्थिति नहीं बदलेगी। जंगल को हुए नुकसान के एवज में तीन साल के भीतर नए क्षेत्र में एक हजार प्रति हेक्टेयर की दर से नए पौधे लगाने होंगे। नोडल एजेंसी और खदान संचालक को भारतीय वन्य जीव संस्था, देहरादून की बायो डायवर्सिटी रिपोर्ट में दिए सुझावों पर अमल करना होगा। सेफ्टी जोन की सीमा निर्धारित करनी होगी। खनन की वजह से बाहर का कोई क्षेत्र प्रभावित हुआ तो उसको रिस्टोर करना होगा।
एक लाख 70 हजार हेक्टेयर जंगल बर्बाद होगा
परियोजना से प्रभावित हो रहे हसदेव अरण्य को बचाने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला का कहना है, सरकार ने परसा कोयला खदान के साथ परसा ईस्ट केंते बासन एक्सटेंशन खदान के दूसरे चरण को भी मंजूरी दे दी है। इसकी वजह से एक लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में समृद्ध जैव विविधता वाला जंगल बर्बाद हो जाएगा। इसका असर नदियों पर भी पड़ेगा। सैकड़ों लोगों को अपने गांव से उजड़ना पड़ेगा। आलोक शुक्ला कहते हैं, इसकी भरपाई कभी भी नहीं हो पाएगी।
