
छत्तीसगढ़ सरकार ग्रामीणों से वादा करने के बाद भी हसदेव क्षेत्र में फर्जी ग्राम सभा की शिकायतों की जांच नहीं करा पाई। आरोप है कि इन्हीं फर्जी ग्राम सभा के प्रस्तावों के आधार पर एक कंपनी ने परसा कोयला खदान के लिए केंद्र सरकार की अनुमति हासिल कर ली है।जिसकी शिकायत लेकर अक्टूबर 2021 में हजारों ग्रामीण कोरबा-सूरजपुर से पदयात्रा करते हुए राजधानी पहुंचे थे।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन परियोजनाओं से प्रभावित ग्रामीणों ने 4 अक्टूबर 2021 से कोरबा के मदनपुर से अपनी पदयात्रा की शुरू की। 10 दिनों में 300 किमी का पैदल सफर कर ये लोग 13 अक्टूबर को दोपहर बाद रायपुर पहुंचे। अगले दिन ग्रामीणों ने राजभवन जाकर राज्यपाल अनुसूईया उइके से मुलाकात कर अपनी तकलीफ सुनाई। शाम को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी इन ग्रामीणों से मिले। उस मुलाकात में मुख्यमंत्री ने फर्जी ग्राम सभा की शिकायतों की जांच कराने का भरोसा दिया। ग्रामीणों से कहा गया कि सरकार उनके साथ अन्याय नहीं होने देगी।
राज्यपाल अनुसूईया उइके ने 20 और 23 अक्टूबर को मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव अमिताभ जैन को पत्र लिखकर यह मुद्दा उठाया। राज्यपाल ने ग्रामीणों की ओर से की गई मांगों पर विचार करने के साथ फर्जी ग्राम सभा की शिकायतों की जांच के लिए भी निर्देश दिया। सीएम के निर्देश के बाद भी अभी तक वहां किसी तरह की कोई जांच शुरू नहीं हो पाई है। मंत्रालय में भी इस संबंध में चुप्पी है। परसा कोल ब्लॉक राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित है। सालाना पांच लाख टन की क्षमता वाली इस खदान को विकसित और संचालित करने का ठेका अडानी समूह के पास है। राजस्थान सरकार और अडानी समूह दोनों इसे शुरू कराने का दबाव बनाए हुए हैं। इसके लिए बार-बार राजस्थान में कोयला संकट का भी मुद्दा उठ रहा है। इधर इस परियोजना से दो गांवों के पूरी तरह और तीन गांवों की बड़ी आबादी पर विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। वहीं 841 हेक्टेयर क्षेत्र का जंगल भी उजड़ जाने का खतरा है।
खनन परियोजना के लिए कलेक्टर की NOC में ग्रामसभा के प्रस्ताव लगाए गए थे। इसमें साल्ही की ग्रामसभा 27 जनवरी 2018 (पेज क्र 336) हरिहरपुर की ग्रामसभा 24 जनवरी 2018 (पेज क्र 337) और फतेहपुर की ग्रामसभा 26 अगस्त 2017 (पेज क्र 338) का विवरण है। ग्रामीण इसे फर्जी बता रहे हैं। कहा जा रहा है, कलेक्टर की NOC जिन तारीखों पर प्रस्ताव का जिक्र है उन पर किसी भी प्रस्ताव पर चर्चा नहीं हुई थी। यह प्रस्ताव ग्रामसभा की समाप्ति के बाद कम्पनी और प्रशासनिक अधिकारीयों के दवाब में ग्राम सचिव से उदयपुर स्थित रेस्ट हाउस में लिखवाया गया है। 2018 में इसकी जानकारी सामने आने पर ग्रामीणों ने उदयपुर थाने में FIR दर्ज कराने के लिए शिकायत भी दी थी।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला कहते हैं, परसा कोल ब्लॉक की स्वीकृति एक फर्जी ग्राम सभा के प्रस्ताव के आधार पर हासिल की गई थी। 14 अक्टूबर को ग्रामीणों ने राज्यपाल के सामने भी यह तथ्य रखा था। उन्होंने मुख्य सचिव को एक पत्र भी लिखा। 21 अक्टूबर को केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने परसा कोल ब्लॉक को अंतिम मंजूरी दे दी। उसका अंतिम आदेश राज्य सरकार के यहां लंबित है। जिस दिन राज्य सरकार यह आदेश जारी कर देगी खनन शुरू हो जाएगा। आखिर सरकार उन शिकायतों की जांच क्यों नहीं करा रही है। अगर जांच हो जाती तो सरकार के पास भी खनन परियोजना को रोकने का एक आधार होता।
सरकार की ओर से देरी से डरे हुए हैं ग्रामीण
राज्यपाल और मुख्यमंत्री के सीधे आश्वासन के बाद भी मौके पर कोई जांच नहीं होता देख प्रभावित गांवों के लोग डरे हुए हैं। उनका गुस्सा भी बढ़ता जा रहा है। स्थानीय स्तर पर उनका आंदोलन भी जारी है। पिछले महीने उनका कंपनी के अधिकारियों के साथ विवाद भी हुआ था, जो गांव में कुछ सर्वे करने आए थे। ग्रामीणों का कहना है, उनके गांव क्षेत्र में खनन शुरू करने के खिलाफ हैं। ऐसा हुआ तो उनके गांव उजड़ जाएंगे। यहां के पर्यावरण को भी नुकसान होगा। कई बार वे लोग ग्राम सभाओं में इसका प्रस्ताव पारित कर चुके हैं।












