बालको संयंत्र के द्वारा संचालित कोविड-19 सेंटर में इतनी भी सुविधा नहीं इतनी भी संसाधन नहीं कि वे स्वयं के कर्मचारियों को कोरोना से मौत के मुंह में जाने से बचा सके।उसी का जीता जागता उदाहरण आज फिर से हम आपके सामने आया है कि बालको संयंत्र में कार्यरत एक ठेका श्रमिक अंजू दास निवासी परसाभाठा की पुनः कोरोना से मृत्यु हो गई जिसका जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ बालको प्रबंधन है। क्योंकि उन्होंने जानबूझकर श्रमिकों को प्रशासन की गाइडलाइंस को तोड़ते पर मजबूर किया।कोरोना अत्यंत तेजी से फैल रहा है इसे देखते हुए भी लोगों को प्रतिदिन भीड़ का सामना करते खुद को संक्रमण का डर है वह जानते हुए भी उन्हें संयंत्र के कैंपस के अंदर रख कर कार्य नहीं करवाया गया।बल्कि प्रतिदिन सड़कों पर विचरण करते हुए आने जाने को मजबूर किया गया जिससे कि संक्रमण और भी फैलता रहा और इन्हीं की तरह और भी कई मजदूरों को अपनी चपेट में लेता रहा। जब कोई भी मजदूर संक्रमित हो जाता है तो प्रबंधन उसे अकेला मरने को छोड़ देती है।तब ना तो प्रबंधन की कोई नीति काम आती है और ना ही उनके द्वारा बनाई गई कोविड-सेंटर मजदूरों के काम आ पाता है।थक हार कर उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है और लास्ट में मृत्यु हुई उनकी किस्मत बन कर रह जाती है बालको प्रबंधन अपने द्वारा चालू की गई कोविड-सेटर की जीतनी बयान बाजी करता है एवं बड़े बड़े सपने लोगों को दिखाता है ऐसी परिस्थिति में वह सारी की सारी धरी की धरी रह जाती है और उनका सारा मैनेजमेंट निष्क्रिय नजर आता है।बालको प्रबंधन कब तक ऐसे स्थानीय लोगों एवं अपने श्रमिकों के एवं उनके परिवारों के जीवन के साथ खेलता रहेगा।अब क्या बालको प्रबंधन को नहीं चाहिए कि वह ऐसे हर मृतक के परिवार को जिसकी मृत्यु कोरोना से हुई हो एवं अब उनके सामने अपनी जीविका चलाने की समस्या उत्पन्न हो गई हो उन परिवारों को कम से कम पांच ₹500000 तत्काल दे।तथा उनके परिवारों में से किसी भी एक व्यक्ति को अनुकंपा नियुक्ति दे।बालको प्रबंधन अपनी संयंत्र में कार्यरत मजदूरों को ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकती उन्हें उनके ऐसे श्रमिकों के परिवारों के साथ इंसाफ करना ही होगा।*शहजाद अहमद खान**निवासी बाल्को नगर कोरबा* *छत्तीसगढ़*
