
रायपुर। संस्कृत विश्व की सर्वाधिक प्राचीन भाषा है. संस्कृत भाषा को सभी भाषाओं की जननी माना जाता है. संस्कृत सभी प्रकार से सम्पन्न व सक्षम भाषा है. इसे देवभाषा, देववाणी, सुरभारती व अमृतवाणी की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि संस्कृत भाषा का आविष्कार मनुष्यों ने नहीं बल्कि देवताओं ने किया है. यह बात समग्र ब्राह्मण परिषद् छत्तीसगढ़ की ओर से आयोजित प्रांत स्तरीय संस्कृत वाचन सम्मेलन में मुख्य अतिथि स्वामी डॉ. इंदुभवानंद जी महराज ने कही.
राजधानी के सिविल लाइन स्थित वृंदावन हाल में शनिवार को आयोजित कार्यक्रम में डॉ. इंदुभवानंद जी महराज ने कहा कि संस्कृत भाषा भारत की पहचान है. हमारी सभ्यता और संस्कृति की धुरी है. यह मधुर, सरस, ललित, पवित्र, दोषों से रहित, अमृततुल्य वैज्ञानिक भाषा है. वेद, शास्त्र, उपनिषद, गीता, रामायण, महाभारत की भाषा संस्कृत ही है, सभी को इसका पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है.
विशिष्ट अतिथि महंत वेदप्रकाशाचार्य जी महराज ने कहा कि संस्कृत का अध्ययन – अध्यापन भाषागत प्रांतीयता के विकार को दूर करके संसार में धर्म स्थापना, वेदों की वाणी, मंत्रों का उच्चारण, ऋषियों के पवित्र ज्ञान के माध्यम से विश्व शांति की स्थापना कर सकता है. इस कार्य के लिए संस्कृत भाषा के प्रति समर्पण भाव आवश्यक है. यह भाषा मानव को मानवता सिखाती है.
उन्होंने कहा कि संस्कृत विकारों को दूर कर मंत्रों की पवित्रता प्रदान करती है. स्वास्थ्य लाभ व दीर्घायु का वरदान देती है, यही नहीं अपितु ज्ञान का आधार, संस्कारों का समावेश व उन्नति की राह भी प्रशस्त करती है. कार्यक्रम के अध्यक्ष डा.दादूभाई त्रिपाठी जी ने कहा कि संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है, अपितु संस्कृत एक विचार है. संस्कृत एक संस्कृति है, एक संस्कार है. संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना है.
इसके पहले कार्यक्रम की शुरुआत में प्रमिला तिवारी, प्रमिला मिश्रा और संस्कृत भारती छत्तीसगढ़ के प.चंद्रभूषण शुक्ला ने उपस्थित अतिथियों के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए स्वागत किया गया. कार्यक्रम के अंत में संगठन के प्रदेश समन्वयक पं.शैलेन्द्र रिछारिया ने आभार प्रकट किया. कार्यक्रम में मंच संचालन डॉ. आरती उपाध्याय द्वारा किया.
कार्यक्रम में आरती शुक्ला, स्वाति मिश्रा, पद्मा दीवान, खुशबू शर्मा, प्रभा दुबे, शशि द्विवेदी, मदालसा तिवारी, पं. सजल तिवारी, पं. विवेक दुबे, पं. संजय शर्मा, पं. दीपक शुक्ला, पं. गौरव मिश्रा, पं. अनुराग त्रिपाठी, पं. अखिलेश त्रिपाठी का विशेष योगदान रहा. यह जानकारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष डा.भावेश शुक्ला पराशर ने दी.











