
सक्ती। कांग्रेस प्रदेश में भारी भरकम बहुमत से सरकार में आई वहीं सक्ती विधानसभा में भी कांग्रेस प्रत्याशी को एक तरफा बहुमत मिला, जिसका फायदा उठाने में कांग्रेस पूरी तरह विफल दिख रही है।
यहां बताना लाज़मी है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में सक्ती क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का अवसर डॉ चरणदास को मिला, और उनके चुनाव में उतरने से पहले ही जीत तय हो गई थी, कारण था कि वे पूर्व में गृहमंत्री, सांसद सहित केंद्रीय मंत्री भी रहे और क्षेत्र के लोग डॉ महंत को कांग्रेस सरकार में प्रबल मुख्यमंत्री का दावेदार मान रहे थे, मगर खेल थोड़ा बिगड़ा और भूपेश बघेल सीएम बन गए लेकिन कद के अनुरूप डॉ महंत को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया। उनके विस अध्यक्ष बनने से भी यह माना जा रहा था कि सक्ती का चहुमुंखी विकास होगा, लेकिन हुआ बिलकुल विपरीत, और साथ ही डॉ महंत दो समुदाय के नेता ही बन कर रह गए।
गत दिनों अपने दौरे के दौरान स्थानीय विश्राम गृह में उन्हें जनता के सामने भी कहना पड़ा था कि आपलोगों की शिकायत रहती है कि मैं एक विशेष समुदाय के घर ही जाता हूं और मिलता हूं मैं आज आपलोगों से मिलने आया हूं। मगर वर्तमान स्थिति जस की तस बनी हुई है, वहीं कांग्रेस सरकार और स्वयं डॉ महंत विस अध्यक्ष होने के बाद भी उनके करीबियों या कहें कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की पूछ परख स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के बीच बिल्कुल भी नहीं है। बता दें कि कांग्रेसियों का जनपद, थाना और कचहरी में कोई काम नहीं हो रहा है, चुनाव में तो इन्ही कार्यकर्ताओं को वोट मांगने जाना है, क्या इन परिस्थितियों में कार्यकर्ता इस वर्ष होने वाले चुनाव में जनता के बीच वोट मांगने जा पाएंगे ? नाम ना छापने की शर्त में कुछ कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ताओ ने कहा कि सक्ती विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ और सिर्फ अग्रवाल और राठौर साहू समाज के लोगों का ही बोल बाला है, अधिकांश विधायक प्रतिनिधि इन्ही दो समुदाय से हैं, वहीं कुछ दिनों पूर्व भी मंडी समिति अध्यक्षों की घोषणा में भी 25 में से 15 राठौर, साहू समाज से हैं, जबकि इस क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के वोटरों की संख्या 50 हजार से अधिक है वहीं 40 हजार अनुसूचित जाति वर्ग के वोटर हैं, साथ ही यादव 15 हजार, मरार पटेल 17 हजार, जायसवाल 8 हजार, बरेठ 12 हजार सहित अन्य जाती समुदाय के हजारों मतदाता हैं, मगर प्रतिनिधित्व सिर्फ और सिर्फ दो ही समाज को मिलता है, जिससे भी क्षेत्र में रोष का माहौल है। वर्तमान में कांग्रेस को कमजोर करने में महंत समर्थकों का सबसे बड़ा हांथ दिख रहा है, सक्ती में वैसे तो कांग्रेसियों में दो गुट एक महंत समर्थक तो दूसरा कांग्रेस का है लेकिन मजे की बात है कि डॉ महंत के समर्थकों के बीच 5 से ज्यादा गुट हैं और अपासी झगड़ा भी चरम पर है। मनहरण, गुलजार, अनुभव, श्यामू, नरेश, सहित भी एक दो और हैं जो अपासी में ही बड़े बनने की होड़ में हैं, ऐसे में प्रशासनिक अधिकारियों को भी असमंजस का सामना करना पड़ता है, एक कहता है कि ये काम कर दीजिए तो बाकी लोग विरोध करते हैं। वहीं डॉ महंत का क्षेत्र से दूर रहना भी एक बहुत बड़ा कारण है कि यहां कांग्रेस कमजोर हो रही है, डॉ महंत महीने में एक या दो बार क्षेत्र में आते हैं और कुछ चुनिंदा लोगों के घर पारी बंधाए जैसे जाते हैं जिसके कारण भी लोग नाराज चल रहें हैं। ऐसे में कांग्रेस की नैया का पार लगना कठिन नहीं नामुमकिन होता जा रहा है। लोगों का कहना भी है कि छत्तीसगढ़ के इतिहास में 2003 के बाद से कोई विस अध्यक्ष रहते चुनाव नहीं जीत पाया है क्या यह इस बार भी दोहराया जाएगा यह भी लोगों के मन मे कौतूहल बनाए हुए है।












