
बिलासपुर के रतनपुर स्थित महामाया देवी मंदिर परिसर रविवार को वैदिक मंत्रोपचार से गूंज उठा। यहां नारद जयंती पर 223 ब्राह्मण बटुकों का सामूहिक उपनयन संस्कार हुआ। यह आयोजन ट्रस्ट की ओर से पिछले 22 साल से हो रहा है। इस दौरान बटुकों की शोभायात्रा भी निकाली गई।
महामाया देवी मंदिर पब्लिक ट्रस्ट के मैनेंजिग ट्रस्ट के अध्यक्ष आशीष सिंह ठाकुर ने बताया कि महामाया मंदिर परिसर में हर साल की तरह इस बार भी उपनयन संस्कार संपूर्ण विधि-विधान से किया गया। इसमें ब्राह्मण बटुकों को तेल, हल्दी, मुंडन ब्रह्मभोज, दीक्षा, हवन, भिक्षा, काशीयात्रा आदि सभी संस्कार मंत्रोचार के साथ कराया गया।
16 संस्कारों में एक है उपनयन संस्कार
आचार्य संतोष शर्मा ने बताया कि सोलह संस्कारों में उपनयन, वेदारंभ एवं समावर्तन संस्कार का विशेष महत्व है। सामूहिक उपनयन संस्कार में बटुकों को मंदिर ट्रस्ट की ओर उपनयन के लिए आवश्यक सामग्री के अलावा कुर्ता, धोती, टोपी, दुपट्टा प्रदान किया गया। उपनयन संस्कार को संपन्न कराने में दो प्रमुख आचार्यों के साथ 11 अन्य सहयोगी भी शामिल थे।
बटुकों को दी गई दीक्षा फिर निकली शोभायात्रा
आचार्य संतोष शर्मा ने बताया कि प्रतिवर्ष यह आयोजन निश्शुल्क किया जाता है। वैदिक धर्म में यज्ञोपवीत दशम संस्कार है। इस संस्कार में बटुक को गायत्री मंत्र की दीक्षा दी जाती है और यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। यज्ञोपवीत का अर्थ है यज्ञ के समीप या गुरु के समीप आना। यज्ञोपवीत एक तरह से बालक को यज्ञ करने का अधिकार देता है। शिक्षा ग्रहण करने के पहले यानी, गुरु के आश्रम में भेजने से पहले बच्चे का यज्ञोपवीत किया जाता था। भगवान रामचंद्र व कृष्ण का भी गुरुकुल भेजने से पहले यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था। दीक्षा के बाद गाजे-बाजे के साथ बटुकों की शोभायात्रा भर निकाली गई, जिसमें उनके परिजन सहित अन्य लोग शामिल हुए।












