
मनमानी का दूसरा नाम अगर बालको कहे तो गलत नहीं होगा। बालको की मनमानी से जनता के साथ के साथ स्वयं बालको कर्मचारी भी परेशान है। बात करे अगर बालको की लापरवाही की तो इसका ताजा नमूना कोरबा में देखने को मिल जाएगा। बालको द्वारा जगह जगह राखड़ डंप किया जा रहा है। गर्मी क दिनों के राखड के आम लोग परेशान हो रहे है। खाने पीने के सामनों से लेकर लोगों को सांस लेने में दिक्कत होती है। लेकिन जनता की समस्या सुनने वाला कोई नहीं है। कई बार प्रशासन से शिकायत के बाद भी बालको प्रबंधन पर कार्यवाही नहीं की जा रही इसे प्रशासन की उदासीनता कहे या बालको को दी गई छूट।
राखड़ से जनता परेशान, प्रशासन मौत
बालको के राखड़ डेम से उड़ने वाली राख से आसपास के गांव के ग्रामीण सांस व चर्म रोग के शिकार होते हैं जा रहे हैं। बालको की कालगुजारी केवल यहीं नहीं थमी अब उनके द्वारा शहर को प्रदूषित किया जा रहा है। राखड़ शहरो में विभिन्न स्थानों पर फेंका जा रहा है। मास्क और दुकान खोलने को लेकर चालानी कार्रवाई करने वाली प्रशासन बालको के सामने नतमस्तक नजर आती है।



कोरोना काल में नहीं दी जा रही मदद
कोरोना काल में एक ओर जहां दूसरे सार्वजनिक प्रतिष्ठान लोगों की मदद के लिए आगे आ रहे है। बिस्तर, ऑक्सीजन, वेटिलेंटर की सुविधा उपलब्ध कराकर लोगों के साथ ही सरकार की मदद कर रहे है। इस मुश्किल घड़ी में भी बालको केवल अपने लक्ष्य की पूर्ति में लगा हुआ है। उसके द्वारा अपने कर्मचारियों के साथ ही मजदूरों की भी मदद नहीं की जा रही।
कर्मचारियों को नहीं मिला स्वास्थ्य सुविधा
बालको की दमकारी नीति के गवाह हम सब है। लेकिन क्या कोई उपक्रम अपने की कर्मचारियों की स्वास्थ्य सुविधा बंद कर सकता है। लेकिन बालको प्रबंधन ने ऐसा ही किया। बालको द्वारा इस माहामारी के दौर में अपने रिटायर्ड कर्मचारियों की स्वास्थ्य सुविधा बंद कर दी। अगर इस कालखंड में किसी के साथ कुछ अनिष्ठ होता हैं, तो उसका उत्तरदायी कौन होगा
