संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान सभा ने आज गांव-गांव में किसान विरोधी काले कानूनों की प्रतियां जलाई। कोरबा जिले में आज के इस विरोध प्रदर्शन के साथ पर्यावरण दिवस के अवसर पर वृक्षारोपण कर पर्यावरण दिवस मनाया।छत्तीसगढ़ किसान सभा के जिला अध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर, जिला सचिव प्रशांत झा सहसचिव दीपक साहू ने बताया कि पिछले साल 5 जून को ही इन किसान विरोधी कानूनों को अध्यादेशों के रूप में देश की जनता पर थोपा गया था। इन कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। उन्होंने कहा कि देश मे खाद्य तेलों की कीमतों में हुई दुगुनी वृद्धि का इन कानूनों से सीधा संबंध है। इन कानूनों के बनने के कुछ दिनों के अंदर ही कालाबाज़ारी और जमाखोरी बढ़ गई है और बाजार की महंगाई में आग लगा है। इसलिए ये किसानों, ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है। किसान सभा के नेताओं ने कहा कि इस देश का किसान आंदोलन अपनी खेती-किसानी को बचाने के लिए इस देश के पर्यावरण और जैव-विविधता को बचाने तथा विस्थापन के खिलाफ भी लड़ रहा है। 5 जून 1974 को ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन केंद्र सरकार के तानाशाहीपूर्ण रूख के खिलाफ ‘संपूर्ण क्रांति’ का बिगुल फूंका था। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार संपूर्ण क्रांति के आंदोलन ने देश की आम जनता को आपातकाल से मुक्ति दिलाई थी, उसी प्रकार कृषि कानूनों के खिलाफ यह देशव्यापी किसान आंदोलन भी देश की जनता को मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों से मुक्ति दिलाने की लड़ाई लड़ रहा है। 5 जून को पर्यावरण दिवस के अवसर पर किसान आंदोलन को तेज करने के साथ पर्यावरण प्रदूषण की चुनौती को समझते हुए पौधा रोपण अभियान चलाने का संकल्प भी किसान सभा के कार्यकर्ताओं ने लिया। पर्यावरण दिवस के अवसर पर किसान सभा के नेता जवाहर सिंह कंवर, प्रशांत झा,दीपक साहू ने विस्थापित ग्राम गंगानगर में पौधा लगाने के साथ किसानों को पौधा भी वितरण किया।किसान सभा के जिला सचिव प्रशांत झा ने कहा कि इस पूंजीवादी व्यवस्था ने पूरी धरती के जीवन के सामने एक संकट खड़ा कर दिया है।पूंजीवाद एक मुनाफा आधारित व्यवस्था होती है जहां मुनाफा सर्वपरि होता है।अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की होड़ के चलते प्राकृतिक संसाधनों का जबरदस्त दोहन किया जा रहा है।करोना जैसी महामारियां भी मानव और प्रकृति के बीच के इसी संघर्ष का नतीजा है।इस लिए जरूरी है कि आज पर्यावरण के मुद्दे पर गंभीरता से विचार किया जाए













