कोरबा। छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी ने रविवार की देर रात कोरबा नगर निगम के महापौर पद के लिए अपनी प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है। पार्टी ने 10 साल बाद उषा तिवारी को महापौर प्रत्याशी के रूप में उतारा है। यह कदम कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उषा तिवारी ने पिछले चुनाव में बगावत की थी और अब उन्हें पार्टी ने फिर से अपना उम्मीदवार बनाया है।

क्या हुआ था 10 साल पहले?
उषा तिवारी, जो पिछले 35 वर्षों से कांग्रेस में सक्रिय हैं, ने 2014 के नगर निगम चुनाव में महापौर की टिकट के लिए दावेदारी की थी। उस समय जब कोरबा नगर निगम की महापौर सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित हुई, तो पार्टी ने तिवारी को दरकिनार कर पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल की पत्नी रेणु अग्रवाल को प्रत्याशी बना दिया। इस फैसले से नाराज होकर उषा तिवारी ने पार्टी से बगावत की और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरीं। अब, 10 साल बाद कांग्रेस ने उषा तिवारी को महापौर पद का प्रत्याशी घोषित किया है।

कोरबा नगर निगम की राजनीति में उषा तिवारी का महत्व
कोरबा नगर निगम की महापौर सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है। बीजेपी ने जहां पूर्वांचल से आने वाली संजू देवी राजपूत को महापौर प्रत्याशी बनाया है, वहीं कांग्रेस ने ब्राह्मण समाज से आने वाली उषा तिवारी पर दांव खेला है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, अब यह चुनाव पूर्वांचल बनाम ब्राह्मण समाज के बीच हो सकता है, और इस समीकरण को ध्यान में रखते हुए दोनों दलों को अपनी रणनीति तैयार करनी होगी।

उषा तिवारी का राजनीतिक सफर
उषा तिवारी का जन्म 1 जुलाई 1960 को हुआ। उनके पति डॉ. के.पी. तिवारी पेशे से चिकित्सक हैं। उषा तिवारी ने बीएससी से स्नातक की शिक्षा पूरी की और 1990 से कांग्रेस से जुड़कर सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में भाग लिया। उन्होंने 1993 से 2003 तक ब्लॉक महिला कांग्रेस कमेटी ग्रामीण की अध्यक्षता की, 2001 से 2004 तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी नगरीय निकाय महामंत्री रहीं, और 2005 से 2011 तक जिला कांग्रेस कमेटी, कोरबा शहर की अध्यक्ष रही। इसके बाद, उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कमेटी में भी महत्वपूर्ण पदों पर काम किया।

कोरबा नगर निगम का राजनीतिक समीकरण
कोरबा नगर निगम के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अपने प्रत्याशी तय कर लिए हैं, लेकिन इस सीट पर सिर्फ प्रत्याशी ही नहीं, बल्कि मंत्री लखनलाल देवांगन और पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल की साख भी दांव पर लगी हुई है। कांग्रेस की कोशिश लगातार तीसरी बार महापौर पद पर काबिज होने की है, वहीं बीजेपी भी इस सीट को अपने पक्ष में करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने के लिए तैयार है।

जातीय समीकरण की बात करें तो कोरबा नगर निगम क्षेत्र में ब्राह्मण समाज और पूर्वांचल के मतदाताओं का महत्वपूर्ण असर है। ऐसे में चुनावी लड़ाई सीधी तौर पर पूर्वांचल बनाम ब्राह्मण के बीच होती दिखाई दे रही है। इसके अलावा, स्थानीय मुद्दे और छत्तीसगढ़िया वोटरों का रुख भी चुनाव परिणाम पर असर डाल सकता है।