उइगर मुस्लिमोंं पर भारत ने नहीं किया चीन का विरोध:UN में अमेरिका पर भारी पड़ा ड्रैगन, 12 मुस्लिम देश भी चीन के साथ

चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों के ह्यूमन राइट्स की स्थिति पर बहस को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद यानी UNHRC में लाया गया प्रस्ताव पास नहीं हो सका। भारत इस प्रस्ताव की वोटिंग में शामिल नहीं हुआ। भारत के चीन के खिलाफ वोटिंग न करने की काफी चर्चा हो रही है। पाकिस्तान समेत कई मुस्लिम देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग करते हुए उइगर मुस्लिमों की बजाय चीन का साथ दिया है।

7 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद यानी UNHRC में चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों के उत्पीड़न पर बहस को लेकर एक प्रस्ताव लाया गया।

इस प्रस्ताव को अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और स्वीडन जैसे देशों के ग्रुप ने पेश किया था। इसके लिए 47 सदस्यों वाली UNHRC में वोटिंग हुई और फैसला चीन के पक्ष में रहा।

19 देशों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, यानी चीन का साथ दिया। इनमें पाकिस्तान और इंडोनेशिया समेत कई मुस्लिम देश भी शामिल थे।

भारत समेत 11 देशों ने एब्स्टेन किया यानी वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।

चीन के खिलाफ UN में उइगर मुस्लिमों से जुड़ा प्रस्ताव लाया क्यों गया था?

चीन के खिलाफ ये प्रस्ताव हाल ही में आई UN के पूर्व हाई कमिश्ननर फॉर ह्यूमन राइट्स माइकल बैकलेट की उस रिपोर्ट के बाद लाया गया था, जिसमें उन्होंने शिनजियांग प्रांत में बड़े पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन का जिक्र किया था।

लंबे समय से चीन पर शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों के उत्पीड़न का आरोप लगता रहा है। कई मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि करीब 10 लाख उइगर मुस्लिमों को चीन ने री-एजुकेशन कैंप के नाम पर जबरन हिरासत में रखा है।

चीन पर न केवल उइगरों के शोषण बल्कि धीरे-धीरे उनकी आबादी को ही खत्म करने के आरोप लगते रहे हैं। चीन इन आरोपों से इनकार करते हुए इसे अमेरिका की अगुआई में पश्चिमी देशों का प्रोपेगेंडा बताकर खारिज करता रहा है।

UNHRC में हालिया वोटिंग के दौरान भी उसने फिर से यही लाइन दोहराते हुए पश्चिमी देशों की आलोचना की। चीन ने वोटिंग से पहले ये भी चेतावनी दी थी कि आज उसे मानवाधिकार के मुद्दे पर टारगेट किया जा रहा, कल ऐसा ही किसी और देश के साथ भी हो सकता है।

भारत और यूक्रेन समेत 11 देश चीन के खिलाफ वोटिंग से रहे दूर

चीन के उइगर मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे पर UNHRC में हुई वोटिंग में भारत ने हिस्सा नहीं लिया। भारत के अलावा यूक्रेन, मैक्सिको, मलेशिया और ब्राजील भी वोटिंग से दूर रहे। कुल मिलाकर भारत समेत 11 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।

खास बात ये है कि चीन के खिलाफ ये प्रस्ताव लाने वाले अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन यूक्रेन इस मुद्दे पर चीन के खिलाफ वोटिंग से हट गया।

भारत ने बताई UN में चीन के खिलाफ वोटिंग न करने की वजह

UN में उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर चीन के खिलाफ वोटिंग न करने की देश-विदेश में काफी चर्चा हो रही है। कई आलोचकों ने तो भारत के वोटिंग से दूर रहने को ‘चीन की मदद’ करने जैसा करार दिया है।

भारत के ऐसा करने की वजह क्या है-इसे वोटिंग के एक दिन बाद खुद विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत ने किसी देश से जुड़े मुद्दे (जैसे-चीन का उइगर मुद्दा) से अलग रहने के अपने पहले के रुख के हिसाब से ही काम किया है। भारत का मानना है कि ऐसे मुद्दे UN में प्रस्ताव पास करने के बजाय बातचीत से बेहतर ढंग से सुलझ सकते हैं।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, ‘भारत सभी मानवाधिकारों का समर्थक है। UNHRC में भारत का वोट उसके लंबे समय से अपनाई गई उस पॉलिसी के तहत है जिसमें हमारा मानना है कि देश-विशेष से जुड़े प्रस्ताव कभी मददगार नहीं होते। भारत इन मुद्दों के समाधान के लिए दोनों पक्षों के बीच बातचीत का समर्थक है।’

भारत-चीन के बीच घट रही तनातनी है वोटिंग से हटने की असली वजह?

हाल के महीनों में भारत-चीन के बीच तनातनी घटने वाली कुछ घटनाओं पर नजर डालिए…

  • इन दोनों के रुख में बदलाव की शुरुआत इस साल मार्च में चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बिना योजना भारत दौरे से हुई थी।
  • अगस्त 2022 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत-चीन की दोस्ती को जरूरी बताते हुए कहा था, ‘भारत-चीन के हाथ मिलाए बिना एशियाई सदी संभव नहीं होगी। इन दोनों देशों के बीच मतभेदों से ज्यादा आपसी हित जुड़े हैं।’
  • सितंबर 2022 में भारत-चीन की सेनाओं ने रूस की मेजबानी में हुए वोस्तोक 2022 मिलिट्री ड्रिल्स में हिस्सा लिया।
  • सितंबर 2022 में LAC पर दोनों देशों ने लद्दाख में सीमा पर तनावपूर्ण पांच पॉइंट्स गोरा-हॉट स्प्रिंग्स, गलवान घाटी, पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण और PP17A से अपनी सेनाएं पीछे हटाईं।

सवाल ये है कि महज 2 साल पहले इन दो देशों की सेनाओं के बीच खूनी झड़प हुई थी और कुछ दशक पहले ये युद्ध भी लड़ चुके हैं, उनके रुख में नरमी की वजह क्या है?

हम 6 प्रमुख कारणों पर नजर डाल रहे हैं…

1.चीन पिछले कुछ सालों से वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ा हुआ है। इसकी वजह उसकी विस्तारवाद नीतियां और कोरोना फैलाने वाला देश होने के आरोप हैं। ऐसे में चीन भारत के साथ दुश्मनी बढ़ाकर और अलग-थलग नहीं पड़ना चाहता।

2.हाल के दिनों में चीन का ताइवान के साथ विवाद गहराया है। खासतौर पर अमेरिका के ताइवन के खुले समर्थन ने चीन-ताइवान को युद्ध की कगार पर ला खड़ा किया है। ऐसे में चीन नहीं चाहता कि वह भारत के रूप में एक और सैन्य रूप से ताकतवर और परमाणु संपन्न देश के साथ तनातनी को बढ़ावा दे।

3. एक्सपर्ट्स का मानना है कि UN में शिनजियांग मुद्दे पर चीन के खिलाफ वोटिंग से भारत को कोई खास फायदा नहीं होगा। अमेरिका, रूस और चीन जैसे ताकतवर देशों के सामने UN बेअसर साबित हुआ है। इसका हालिया उदाहरण यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के खिलाफ UN में पास हुए प्रस्ताव हैं, जिनके बावजूद रूस को रोका नहीं जा सका।

इसलिए भारत जानता है कि UN में चीन के खिलाफ प्रस्ताव पास करके भी उसे रोक पाना मुश्किल होगा। लेकिन चीन के खिलाफ वोटिंग से भारत के चीन से संबंध बिगड़ने समेत कई नुकसान हो सकते हैं। साथ ही भारत UN में किसी एक देश को टारगेट किए जाने के पक्ष में कभी नहीं रहा है।

4. सीमा पर तनाव के बावजूद भारत और चीन के बीच व्यापार हाल के सालों में तेजी से बढ़ा है। 2021 में भारत-चीन का व्यापार पहली बार 100 अरब डॉलर को पार करके 125 अरब डॉलर, यानी करीब 9.50 लाख करोड़ पर पहुंच गया।

2022 की पहली तिमाही में भारत-चीन का व्यापार 31.96 अरब डॉलर यानी करीब 2.42 लाख करोड़ रहा, जो पिछले साल की तुलना में 15% ज्यादा है। ऐसे में दोनों देश किसी भी विवाद की वजह से इसे पटरी से नहीं उतारना चाहते हैं।

5. कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसकी एक वजह कश्मीर भी है। चीन कई बार पाकिस्तान का समर्थन करने के लिए कश्मीर मुद्दे को UN में उठा चुका है। अगर भारत उइगर मुद्दे पर चीन के खिलाफ वोट करता तो संभव है कि भविष्य में चीन भी पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत को कश्मीर के मुद्दे पर UN में घेरने की कोशिश कर सकता है।

6. कोरोना महामारी की वजह से चीन की इकोनॉमी डगमगाई हुई है और तमाम पाबंदियों के बावजूद कोरोना वहां खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। भारत भी दो साल तक कोरोना की मार झेलने के बाद अपनी इकोनॉमी को फिर से पटरी पर लाने की कोशिशों में जुटा है। ऐसे में दोनों ही देश नहीं चाहेंगे कि कोई भी मुद्दा उनके बीच तनाव की वजह बने और कोरोना से प्रभावित हो चुकी उनकी इकोनॉमी को और नुकसान पहुंचाए।

… लेकिन चीन कश्मीर मुद्दे पर UN में पाकिस्तान का दे चुका है कई बार साथ

भारत चीन के खिलाफ उइगर मुद्दे पर वोटिंग से हट गया है। लेकिन कश्मीर मुद्दे पर चीन कई बार UN में भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ दे चुका है। साथ ही पाकिस्तान में छिपे आतंकियों पर बैन लगाने के भारत के प्रयासों के खिलाफ वीटो भी कर चुका है।

अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाए जाने के बाद से चीन-पाकिस्तान के साथ मिलकर कम से कम 3 बार कश्मीर मुद्दे पर UN में भारत के खिलाफ चर्चा की कोशिश कर चुका है।

चीन और पाकिस्तान के 2019 में दो बार इस प्रयास में असफल होने के बाद जनवरी 2020 में चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी UNSC में कश्मीर मुद्दे पर ‘क्लोज्ड डोर मीटिंग’ का प्रस्ताव लाया था। लेकिन अमेरिका और फ्रांस के विरोध के चलते चीन अलग-थलग पड़ गया था।

तब UNSC के 15 में से 14 सदस्यों ने चीन के प्रस्ताव का विरोध किया था। इन देशों ने कश्मीर मुद्दे को भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा बताते हुए इस पर UN में चर्चा से इनकार कर दिया था।

मुस्लिम देश भी उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर चीन के साथ खड़े नजर आए

UNHRC में उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर मुस्लिम देशों की आवाज माने जाने वाले ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन यानी OIC के देश चीन के साथ खड़े दिखे। OIC मुस्लिमों देशों का दुनिया में सबसे बड़ा संगठन है, इसमें 57 मुस्लिम देश शामिल हैं।

UNHRC में उइगर मुस्लिमों पर चर्चा के प्रस्ताव पर OIC के 17 देशों में से 12 ने वोटिंग में चीन का साथ दिया। इन देशों में इंडोनेशिया और पाकिस्तान जैसे देश प्रमुख हैं। OIC के केवल एक सदस्य सोमालिया ने ही चीन के खिलाफ वोट दिया। वहीं 4 सदस्य मलेशिया, लीबिया, गाम्बिया और बेनिन वोटिंग से दूर रहे।

उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर हमेशा से चीन के साथ खड़े रहे हैं ताकतवर मुस्लिम देश

ये पहली बार नहीं है जब दुनिया के ताकतवर मुस्लिम देशों ने उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर चीन का साथ दिया है। इससे पहले भी वे ऐसा अक्सर करते रहे हैं।

  • मार्च 2019 में मुस्लिम देशों के संगठन OIC ने चीन की मुस्लिम नागरिकों को देखभाल की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए तारीफ की थी।
  • मुस्लिम देश न केवल उइगर मुस्लिमों के मामले में चीन का समर्थन करते रहे हैं बल्कि उइगर मुस्लिमों के खिलाफ चीन के चलाए जा रहे वैश्विक कैंपेन का भी समर्थन करते रहे हैं।
  • खाड़ी के कम से कम छह देशों-मिस्र, मोरक्को, कतर, सऊदी अरब, सीरिया और यूएई ने चीन के इशारे पर न केवल उइगर मुस्लिमों को हिरासत में लिया है बल्कि चीन को डिपोर्ट भी किया है। द टाइम की रिपोर्ट के मुताबिक, 2002 से अब तक चीन के इशारे पर अरब देशों ने करीब 292 उइगर मुस्लिमों को हिरासत में लिया है या डिपोर्ट किया है।
  • अरब देशों में सबसे ताकतवर देश माना जाने वाला सऊदी अरब कई बार चीन में उइगर मुस्लिमों के खिलाफ एक्शन का समर्थन कर चुका है। 2019 में चीन के दौरे पर गए सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों के खिलाफ चीन की कार्रवाई को आतंक और चरमपंथ के खिलाफ कार्रवाई बताते हुए समर्थन किया था।

चीन के खिलाफ मुस्लिम देशों की खामोशी की वजह क्या है?

उइगर मुद्दे पर मुस्लिम देशों की खामोशी की प्रमुख वजह चीन से जुड़े उनके आर्थिक हित हैं। आलम ये है कि चीन मुस्लिम वर्ल्ड में धीरे-धीरे अमेरिका की जगह लेता जा रहा है।

  • चीन 50 मुस्लिम देशों में 600 अलग-अलग प्रोजेक्ट्स में करीब 400 अरब डॉलर यानी 31 लाख करोड़ रुपए का निवेश कर चुका है।
  • कोरोना महामारी से निपटने के लिए चीन ने मुस्लिम देशों को कोरोना वैक्सीन की डेढ़ अरब अरब डोज मुफ्त में दी थी।
  • सेंट्रल एशिया और खाड़ी के कई देश चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी BRI से जुड़े हैं। ये प्रोजेक्ट चीन ने 2013 में शुरू किया था और ये एशिया, अफ्रीका, यूरोप और ओशिनिया के 78 देशों को रेलमार्ग, शिपिंग लेन और अन्य नेटवर्क के जरिए जोड़ता है। जानकारों का कहना है कि चीन BRI को उइगरों के नरसंहार के समर्थन के लिए टूल के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
  • मुस्लिम देशों की उइगर मुद्दे पर खामोशी की एक और प्रमुख वजह ह्यूमन राइट्स के मामले में उनका खुद का बेहद खराब रिकॉर्ड है। इसीलिए ये देश उइगर जैसे मुद्दों पर खामोश रहते हैं, ताकि उनके यहां के ह्यूमन राइट्स वायलेशन के मुद्दों की चर्चा न हो।