कोरबा। खनन प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना जिला खनिज फाउंडेशन (DMF) छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की भेंट चढ़ चुकी है। पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए बनाई गई यह योजना अब नेताओं और नौकरशाहों की निजी कमाई का साधन बनकर रह गई है।
कोरबा जिले में हुए DMF घोटाले के मामलों ने इसकी असलियत उजागर कर दी है। हाल ही में पूर्व कलेक्टर आईएएस रानू साहू समेत छह आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद जेल से रिहा किया गया। रानू साहू पर कोल स्कैम के साथ-साथ DMF में करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार के आरोप हैं। ED और EOW/ACB की जांच में पाया गया कि टेंडर आवंटन में 25 से 40 प्रतिशत तक कमीशनखोरी की जाती थी और सिफारिश वाले ठेकेदारों को ही लाभ पहुंचाया जाता था।
जांच में सामने आया कि अफसरों और राजनीतिक दल से जुड़े नेताओं ने DMF के ठेकों में भारी कमीशन वसूला। कई फर्जी फर्में बनाई गईं, 76.50 लाख नकद, 8 बैंक खातों में 35 लाख रुपये, दस्तावेज और डिजिटल डिवाइस जब्त किए गए। ED ने रानू साहू व माया वारियर सहित आरोपियों की 23.79 करोड़ की संपत्ति कुर्क की, जिसमें से 21.47 करोड़ अचल संपत्ति है।
पारदर्शिता खत्म, जानकारी गायब
2018 तक DMF की राशि, स्वीकृत कार्य और खर्च का ब्योरा वेबसाइट पर अपलोड होता था, लेकिन कोरोना काल में यह प्रक्रिया बंद हो गई और आज तक शुरू नहीं हुई। खनन प्रभावित क्षेत्रों के लिए बने इस फंड का बड़ा हिस्सा ऐसे इलाकों में खर्च किया गया जिनका खनन से कोई लेना-देना नहीं। स्थानीय लोगों की इसमें कोई भागीदारी नहीं है, न ही सामाजिक ऑडिट कराया गया।
फंड से बनी विवादित योजनाएं
पूर्व कलेक्टर किरण कौशल के समय “सोन चिरैया” योजना के तहत छात्राओं को अंडे बांटे गए, जिनकी गुणवत्ता पर सवाल उठे। वर्तमान कलेक्टर अजीत वसंत DMF से जिलेभर के स्कूलों में “गरम नाश्ता” योजना चला रहे हैं। सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार की मौजूदा योजनाएं पर्याप्त नहीं, जो इन अतिरिक्त कार्यक्रमों के लिए DMF का इस्तेमाल किया जा रहा है।