knn24.com/कोरबा। पंडो जनजाति को विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा प्राप्त है और इन्हें राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जाता है। छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जो अपने अंदर कई तरह की विशिष्टताओं को समेटे हुए है। यहां की आदिवासी जनजातियां, उनकी सभ्यता और संस्कृति हमेशा से ही दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। वनांचल क्षेत्र में निवासरत पंडो जनजाति के लोगों पर प्रशासन के मातहत कर्मचारी अपनी दबंगई के चलते अक्सर सुर्खियों में बने रहते है।
लगातार सुर्खियों में रहने वाला कटघोरा वनमण्डल में फिर हुआ नया कारनामा कटघोरा वनमण्डल अंतर्गत चैतमा वनपरिक्षेत्र के रामाकछार व तेलसरा में पदस्थ बीटगॉर्ड भीम पटेल व उनकी पत्नी सविता पटेल के द्वारा यहां निवासरत विशेष जनजाति के पंडों जनजाति के लोगों से पट्टे दिलाने के नाम मोटी रकम की मांग की जा रही है, जिसकी शिकायत लेकर यहां के पंडों जनजाति द्वारा कटघोरा वनमण्डलाधिकारी कार्यालय पहुँच कर शिकायत दी। ग्रामीणों ने बताया कि ग्राम तेलसरा में पदस्थ बीटगॉर्ड भीम सिंह पटेल व रामाकछार में पदस्थ बीटगॉर्ड सविता पटेल दोनों पति पत्नी है और उन लोगों के द्वारा वन अधिकार दावा के लिए पैसे लिए जा रहे है और पैसों की लगातार मांग की जा रही है। कई लोगों ने आरोप लगाया कि काम के लिए उनसे बड़ी राशि ली गई है। दोनों बीटगॉर्ड द्वारा लगातार पैसों की मांग की जा रही है और कहा जाता है अगर पैसे नहीं दिए तो तुमहारे दावे को अपात्र घोषित करा दूंगा. बीटगॉर्ड द्वारा यह भी कहा जाता है कि अगर पैसे नहीं दिए तो डीएफओ मैडम को बता कर तुम्हारे काम को रुकवा दूंगा। पंडों जनजाति के लोगों ने बताया कि हम सभी चाहते है कि दोनों बीटगॉर्ड को अन्यत्र ट्रांसफर किया जाए जिसकी शिकायत लेकर हम आज ष्ठस्नह्र कार्यालय आएं हैं।
सौ रुपये की रोजी देकर कराया काम, नहीं मिला भुगतान
ग्राम तेलसरा व रामाकछार के पंडों ने बताया कि बीटगॉर्ड भीम सिंह पटेल व सविता पटेल के द्वारा उन्हें न्यूनतम रोजी 100 रुपये में कार्य भी कराया गया था जिसका भुगतान आज दिनांक तक नहीं मिल पाया है पैसों की मांग करने पर अभद्र तरीके से गाली गलौज दी जाती है. शराब पीकर फोन द्वारा पट्टे के लिए पैसों की मांग की जाती है। वनाधिकार मान्यता अधिनियम से जहां वनवासियों जो वनों में निवास कर रहीं है,चाहे वह जनजाति कोई भी हो, को भूमि स्वामी का हक मिल रहा है, वही जमीन का पट्टा मिलने से शासन की योजनाओं का लाभ भी मिल रहा है। प्रदेश में 13 दिसम्बर 2005 से पहले वन क्षेत्र में काबिज वनवासियों को वनाधिकार अधिनियम के अंतर्गत लाभ दिया जा रहा है।