knn24.com/ अब जबकि 2021 शुरू हो चुका है, भारत में कोविड-19 महामारी ऐसे मुकाम पर पहुंच गई है, जहां आबादी के अधिकांश हिस्से में वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है. हालांकि, बीमारी के कारण बहुत से लोगों की जान गई है लेकिन अच्छी बात ये है कि भारत में कोविड के कारण मृत्यु दर कई अन्य देशों की तुलना में काफी कम है. अब वैक्सीन का रोल-आउट तय हो जाने से एक चुनौतीपूर्ण वर्ष का सामना करने के बाद उम्मीदें जगाने वाली वजहें मौजूद हैं.
भारत में कोविड से निपटने की नीति बनाने वालों के सामने सबसे पहला सवाल यही है कि देश में महामारी के खात्मे तक इस बीमारी से बचाव के लिए वैक्सीन का इस्तेमाल बेहतर ढंग से कैसे किया जाए, जिसका रोल-आउट 16 जनवरी को होगा और इसे सबसे पहले तीन करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों को लगाया जाएगा. जनसंख्या के आकार और वैक्सीन के उत्पादन की दर को देखते हुए यह तय है कि पूरी आबादी के टीकाकरण में काफी समय लग सकता है. इसलिए यह तय करना आवश्यक ही होगा कि प्राथमिकता किसे दी जाए.
वैक्सीन आने के बाद भी अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने वायरस के संक्रमण पर काबू पाने के प्राथमिक साधन के रूप में लॉकडाउन लगाए रहना जारी रखा है. इसके नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं, व्यवसाय, स्कूल और धार्मिक स्थल बंद होने के बावजूद कोविड केस और इसके कारण मौतों का आंकड़ा बढ़ ही रहा है. भारतीय नीति निर्धारकों को इन बुरे उदाहरणों से ठीक से सीख लेनी चाहिए और देशभर में लाखों गरीब लोगों का जीवन और आजीविका तबाह कर देने वाले लॉकडाउन से बचना चाहिए.
मृत्युदर के आंकड़े हमें बताते हैं कि कोविड संक्रमण बुजुर्ग आबादी के लिए सबसे बड़ा जोखिम है. दुनियाभर में 70 से कम उम्र के लोगों में संक्रमण के बाद ठीक होने होने की दर 99.95 प्रतिशत है, जबकि 70 वर्ष और उससे अधिक उम्र वालों के लिए यह आंकड़ा 95 प्रतिशत है. ऐसे में नैतिकता तो यही कहती है कि वैक्सीन सबसे पहले कोविड मरीजों की देखभाल करने में जुटे अग्रणी स्वास्थ्यकर्मियों के साथ-साथ 70 और उससे अधिक उम्र के लोगों को दी जानी चाहिए.