जिले में राखड़ एक बड़ी समस्या बन गई है। यहां 10 हजार मेगावाट क्षमता के पावर प्लांट स्थापित हैं। बड़े बिजली प्लांटाें की बात करें ताे एनटीपीसी, एचटीपीपी, डीएसपीएम, बालकाे, लैंकाे व अन्य प्लांटाें में ही बिजली उत्पादन के लिए हर दिन करीब 1 लाख टन कोयला की खपत हाेती है। इसका 35 फीसदी याने 35 हजार टन राख प्लांटाें से बिजली बनने के दाैरान निकलता है।प्रमुख बिजली प्लांटाें के ही राखड़ बांध गाेढ़ी, धनरास, लाेतलाेता, बालकाे, रिस्दा व अन्य जगहाें को बनाया गया है, जहां अभी 66 कराेड़ मिट्रिक टन से ज्यादा राख जमा है, जाे लाेगाें के लिए मुसीबत है। गर्मी के दिनाें में थाेड़ी हवा चलती है, तो पूरे शहर को अपने आगोश में ले लेती है। सड़क पर चलना और सांस तक लेना भी मुश्किल हाेता है। राखड़ बांधाें में जगह नहीं बची है। ऐसे में ऊंचाई बढ़ाकर काम चलाया जा रहा है, लेकिन जैसे-जैसे बांधाें की ऊंचाई बढ़ रही है, परेशानी भी बढ़ रही है। लोगों के सेहत व पर्यावरण के लिए भी यह खतरनाक है। पर्यावरण विभाग का कहना है कि ऐश डालने से हाेने वाले प्रदूषण काे राेकने संस्थानाें काे पानी छिड़काव करने की हिदायत दी गई है, ताकि राख न उड़े, निरीक्षण भी करते हैं।












