KNN24.COM/ एसईसीएल ने कोरबा, कोरिया और सूरजपुर जिले के बिश्रामपुर में कोयला खदानों से अरबों रुपए के कोयले का उत्खनन किया है। इसके बाद कंपनी ने बड़े-बड़े गड्ढे खुले छोड़ दिए हैं। इसके कारण उपजाऊ और बेश कीमती भूमि बंजर हो गई है। वहीं बीते कुछ वर्षों में 20 से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। यहां हर साल हादसे में 3-4 लोगों की मौत हो ती है। कोरबा जिले में भू धंसान की घटनाएं भी कभी कभार होती रहती हैं। इसके कारण खेती की जमीन भी खराब हो रही है। कोरबा में 300 एकड़ जमीन खराब हो चुकी है। जिसमें से 90 एकड़ जमीन भू धंसान के कारण खेती करने योग्य ही नहीं रह गई है।
अंबिकापुर/ बिश्रामपुर: सौ से डेढ़ सौ फीट गहरी क्वारी छोड़ी, इनमें पूरे साल भरा रहता है पानी, जिसमें हर साल औसत 5 लोग अपनी जान गंवाते हैं
एसईसीएल बिश्रामपुर की ओसीएम खदान से कोयला निकालने के बाद वहां जानलेवा गड्ढे छोड़ दिए गए हैं। ये ओपन कास्ट माइंस थीं। खदान बंद होने के बाद सुरक्षा के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए समतलीकरण कर पौधारोपण करना था, लेकिन इस पर कहीं काम ही नहीं किया गया। बंद कोयला खदान क्षेत्रों की बंजर भूमि और जगह-जगह गड्ढे इसके उदाहरण हैं। जहां से कोयला निकाला जा चुका है और खदानें बंद हो चुकी हैं, वहां 100 से 150 फीट गहरी क्वारी में बारहों महीने पानी भरा रहता है। कई जगह लोग निस्तरी में इसका उपयोग करते हैं। वहीं कोयला और कबाड़ चोरी में यहां लोगों की जान जाती रही है। हद तो यह है कि एसईसीएल इस पर ध्यान नहीं देता है। जब-जब घटनाएं हुईं, हर बार आश्वासन ही मिलता रहा कि जहां गड्ढे हैं, वहां फिलिंग कराई जाएगी। हालत बताते हैं कि एसईसीएल को कोयला निकलाने के बाद लोगों की जान से कोई सरोकार नहीं रह गया है। भास्कर ने इन क्षेत्रों की पड़ताल की तो पता चला कि बंद खदानों में जानलेवा गड्ढों के पास सिर्फ बोर्ड लगा कर छोड़ दिए गए हैं, तो कहीं बोर्ड भी नहीं दिखे। ऐसी जगहों पर कहीं फेसिंग नहीं कराई गई है। पिछले वर्षों में यहां कई लोगों की जान चुकी है। 1960 की यह कोयला खदान है, जो कई साल पहले ही बंद हो चुकी है। यही स्थिति एसईसीएल की अमेरा और अमगांव खदान की है। इन खदानों का विस्तार होना है। इन क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च हो गए, लेकिन धरातल पर स्थिति बदहाल है।
1. बिश्रामपुर ओसीएम की पोखरिया खदान में 21 मई 2015 को नहाने के दौरान दतिमा निवासी 4 दोस्तों की मौत हो गई थी। सभी क्रिकेट खेलने के बाद वहां नहाने गए थे, तभी गहरे पानी में चले गए और चारों की डूबने से मौत हो गई थी। गड्ढे अब भी नहीं भरे।
2. एसईसीएल बिश्रामपुर की बंद पड़ी खदान एक नंबर क्वारी में टीले नुमा स्थल पर खुदाई कर रहे एक दंपती की एकाएक टीले के धंसकने से दबकर मौत हो गई थी। मृतक शिवनंदपुर तालाब पारा के रहने वाले थे। वे कोयला निकालने गए थे।
3. बिश्रामपुर रेलवे स्टेशन के पीछे 6 नंबर क्वारी में 12 से अधिक लोगों की अब तक जान जा चुकी है। कोयला निकालने के बाद गड्ढे को नहीं पाटा गया। यह खुली खदान है। यह नहाने के लिए लोग जाते हैं। वहीं जयनगर, कुंजनगर और तेलईकच्छार का निस्तर क्षेत्र है। कई लोगों की जाने के बाद भी यहां गड्ढे नहीं पाटे गए हैं। वहीं सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। प्रतिबंधित क्षेत्र का बोर्ड लगा कर छोड़ दिया है।