/कोरबा जिले के कुसमुण्डा क्षेत्र अंतर्गत ग्राम नराइबोध जेलपारा के समीप उत्पादन विहीन लक्ष्मण खदान में लगभग ढाई माह पूर्व एक भैंस सैकड़ो फीट निचे गिर गयी थी, चूंकि खदान के निचले हिस्से में पानी भरा था जिससे भैस की जान बच गयी,भैस जैसे तैसे तैर कर पानी से किनारे पर आ गयी परन्तु खदान के अंदर पत्थर और पानी के सिवाय कुछ खाने को नही था, गौ सेवको को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने भैंस को निकालने गेवरा प्रबन्धन एवम नगर निगम से गुहार लगाई पर किसी के द्वारा किसी प्रकार की कोई मदद नहीं कि गयी, गौ सेवको के सामने कई किलोमीटर तक फैला जल भराव था और पीछे सेकड़ो फीट सीधी ऊंची पहाड़,ऐसे में भैस को बाहर निकालना किसीनिगम से गुहार लगाई पर किसी के द्वारा किसी प्रकार की कोई मदद नहीं कि गयी, गौ सेवको के सामने कई किलोमीटर तक फैला जल भराव था और पीछे सेकड़ो फीट सीधी ऊंची पहाड़,ऐसे में भैस को बाहर निकालना किसी के भी लिए नामुमकिन सा था, गौ सेवक भैस के खाने लिए खदान के बाहर से चारा की व्यवस्था कर रहे थे, इसी तरह कई माह बीत गए, भैंस खुली आसमान और गहराई में होने की वजह से कम वायु दाब के कारण दुबली होने लगी,इधर गौ सेवको ने SECL एवम निगम के कई अधिकारियो के पास भैंस को निकालने आवेदन – निवेदन करते रहे,परन्तु परिणाम शून्य ही हो रहा था। पत्थरो के बीच पड़ी भैंस भी अब दुबलाने लगी थी, गर्मी से उसके शरीर के काले बाल भूरे रंग के हो रहे थे, गौ सेवको को भैंस की चिंता और अधिक सताने लगी ।आखिरकार जब किसी सक्षम व्यक्ति से मदद की कोई उम्मीद नहीं मिलती देख गौ सेवको में स्वयं तय किया कि वे सभी मिलजुल कर भैंस को खदान से जैसे भी हो बाहर निकालेंगे। इसके लिए 12 गौ सेवको की एक टीम तैयार की गई जिसमें जेलपारा और विकास नगर कुसमुण्डा क्षेत्र के गौ सेवक शामिल हुई, रस्सी, डंडे, बाल्टी, डब्बे, पतवार, चारा इत्यदि लेकर सभी युवक सुबह 9 बजे लक्ष्मण खदान में उतरे और बन्द पड़ी खदान में खाली ड्रमो से बनी एक बोट नुमा साधन जो पानी मे तैरती थी उसे इस पार से उस पार करीब 1 किलोमीटर ले जाया गया, भैंस चारा देने वाले गौसेवको से भलीभांति परिचित हो चुकी थी इसलिए गौ सेवको ने जब उसे नाव में ले जाने उसके गले मे रस्सी बांधी तो भैस ने आसानी से रस्सी पहन ली, भैस गौ सेवको के साथ नाव में सवार हो गयी, गौ सेवक जैसे तैसे नाव को पानी मे झेलते झेलते उस पार से इस पार ले आये। अब उनके सामने भैंस को ऊपर ले जाने की चुनोती थी, खिसकती मिट्टी और बड़े बड़े पत्थरो के ढेर से भैंस को ऊपर चढ़ाना एवरेस्ट फतेह करने से कम नही था, गौ सेवक अब हारने वाले नही थे, उन्होंने आज भैंस को बाहर निकालने की ठानी ही थी और समय जरूर लगा पर जैसे तैसे कर भैंस को सेकड़ो फीट ऊपर ले ही आये।