कोरबा के मूल निवासी है उपेक्षित, नहीं मिल रही है किसी भी तरह की सुविधा, पक्ष में आया मूल निवासी मुक्ति मोर्चा

कोरबा। जिन कोरवा आदिवासियों के नाम पर ही कोरबा आदिवासी जिला बनाया गया है आज हजारों बाहरी लोग बड़ी बड़ी नौकरियां,ठेकेदारी,व्यापार ,उद्योग ,नेतागिरी चलाते हैं । करोड़ों अरबों के मालिक बन चुके हैं । किन्तु किसी को इन अति पिछड़े कोरवा आदिवासियों की चिंता नहीं रही।

 

मूलनिवासी मुक्ति मोर्चा ने इनके लिए अलग विकास प्राधिकरण बनाकर इन्हीं समुदाय के प्रतिनिधियों को इनका अध्यक्ष बनाकर सुनियोजित विकास करने की मांग रखे थे, किन्तु किसी सरकार को इनकी चिंता नहीं है,  कोरबा के जल,जमीन और जंगल के असली मालिक इस तरह गरीबी और गुलामी में रहकर मरने को मजबुर हो चुके हैं ।

 

जब कोई इशाई या मुसलमान इनकी मदद करे तो धर्मांतरण के आरोप लगाकर हिन्दू धर्म के ठेकेदार दंगे करने पर आमादा होते हैं, पर इनको हर कंपनी में रोजगार दिलाने के लिए कभी सामने नहीं आते।हिन्दू जातिवाद ने इंसानियत को इतना गिरा दिया है कि लोग जानवरों से बदतर बनते जा रहे हैं। सरकार में बैठे लोगों से अपील है कि कुछ बचा हो तो इनके लिए सम्मानजनक रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की गारंटी का अधिकार दे।