26 मई को काला दिवस के रूप में मनाएंगे मजदूर और किसान संगठन

संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रव्यापी आह्वान के तहत कल 26 मई को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी,छत्तीसगढ़ किसान सभा,सीटू,जनवादी महिला समिति ने पूरे जिले में काला दिवस के रूप में मनाते हुए गांव-गांव, घर-घर में काले झंडे फहराने और मोदी सरकार का पुतला जलाने का आह्वान किया है

माकपा,किसान सभा और सीटू की संयुक्त बैठक हुई बैठक में प्रशांत झा,वी एम मनोहर, जनाराम कर्ष,जनक दास, प्रताप दास, जवाहर सिंह कंवर उपस्थित थे बैठक में 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा राष्ट्रव्यापी आह्वान के तहत काला दिवस मनाने का समर्थन करते हुए कोरबा जिले के गांव गांव श्रमिक बस्तियों कालोनी में काली पट्टी बांधकर घरों पे काले झंडे फहराने और मोदी सरकार का पुतला दहन का निर्णय लिया गया है।
माकपा के जिला सचिव प्रशांत झा ने कहा कि 26 मई को ऐतिहासिक किसान आंदोलन को छह महीना पूरा हो रहा है और उसी दिन मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के भी सात साल पूरे हो रहे है। मोदी नेतृत्व वाली सरकार स्वतंत्र भारत में सबसे दिवालिया, हृदयहीन, गरीब किसान मजदूर विरोधी, मंहगाई बढ़ाने वाली और नौकरी छीनने वाली जन विरोधी सरकार साबित हुई है।
सीटू के जिला महासचिव वी एम मनोहर ने कहा की हम तीन किसान विरोधी काले कानून और चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को तत्काल निरस्त करने की मांग करते है। और कल पूरे जिले में काला दिवस के रूप में मनाएंगे।
किसान सभा के जिलाध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर ने सुकमा के सिलगेर में आदिवासियों पर गोलियां चलाने और तीन आदिवासी किसानों की मौतों की निंदा करते हुए राजनैतिक दलों और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को घटना स्थल तक न जाने देने के लिए भूपेश सरकार को भी घेरा है और इस गोलीकांड की हाई कोर्ट के किसी रिटायर्ड जज से उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। किसान नेताओं ने पूछा है कि इस सरकार में इतनी डर और बेचैनी क्यों है और वास्तव में वह आम जनता से क्या छुपाना चाहती है? गोलीकांड की दंडाधिकारी जांच के आदेश को खारिज करते हुए किसान आंदोलन के नेताओं ने इसे लीपापोती करार दिया है और इस गोलीकांड के लिए प्रथम दृष्टया जिम्मेदार अधिकारियों पर तुरंत कार्यवाही की मांग की है। वनोपजों की खरीदी पुनः शुरू करने की मांग भी किसान सभा के नेताओं ने की है।

माकपा के साथ मजदूर और किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि कोरोना काल में जितने लोगों की मौत हुई है, वे महामारी से कम, निजीकरण के कारण इस सरकार की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से ज्यादा मरें हैं। इन मौतों ने सरकार के चेहरे को बेनकाब और राजा को नंगा कर दिया है। कोरोना से बचाव के लिए संसद द्वारा आबंटित फंड का इस्तेमाल सार्वभौमिक टीकाकरण के लिए करने तथा गांव स्तर पर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने ,सभी गरीब परिवारों को 7500 रुपये प्रतिमाह आर्थिक मदद देने की मांग भी मोदी सरकार से की है।